आज भारत भास्कर समाचार पत्र में प्रकाशित विज्ञापनों में नैतिकता का प्रश्न' विषयक एक लेख
हाल ही में पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने इंटरनेट पर चल रहे फर्जी विज्ञापनों में उनके नाम, फोटो और आवाज इस्तेमाल करने पर धोखाधड़ी का मुकदमा मुंबई क्राइम ब्रांच में दर्ज कराया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि विज्ञापन में नीचे लिखा हुआ था कि प्रोडक्ट को खुद सचिन ने रिकमेंड किया है।
फर्जी विज्ञापनों को लेकर आए दिन शिकायतें बढ़ रही हैं। ये विज्ञापन, उपभोक्ताओं को भ्रमित करके प्रभावित करने के लिए तैयार किये जाते हैं। यहीं पर विज्ञापनों में नैतिकता का प्रश्न उठता है। भारत में विज्ञापनों की देखरेख के लिए और इनकी गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) को जिम्मेदारी दी गई है। एएससीआई भारत में विज्ञापन उद्योग का एक स्वैच्छिक स्व-नियामक संगठन है। यह 1985 में स्थापित, कंपनी अधिनियम की धारा 25 के तहत एक गैर-लाभकारी कंपनी के रूप में पंजीकृत है।
एएससीआई उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए विज्ञापन में स्व-विनियमन के लिए प्रतिबद्ध है। यह सुनिश्चित करना चाहता है कि विज्ञापन स्व-विनियमन के लिए अपने कोड के अनुरूप हों, जिसके लिए विज्ञापनों को कानूनी, सभ्य, ईमानदार और सच्चा होना चाहिए, और प्रतिस्पर्धा में निष्पक्षता का पालन करते हुए खतरनाक या हानिकारक नहीं होना चाहिए। एएससीआई प्रिंट, टीवी, रेडियो, होर्डिंग्स, एसएमएस, ईमेलर्स, इंटरनेट/वेबसाइट, उत्पाद पैकेजिंग, ब्रोशर, प्रचार सामग्री और बिक्री के बिंदु सामग्री आदि जैसे सभी मीडिया में शिकायतों को देखता है।
मीडिया की आर्थिक आय के साधन हैं विज्ञापन। मीडिया को विज्ञापनों से आमदनी होती है। विज्ञापनों को बहुत ही आकर्षक तरीके से बनाया जाता है ताकि वे अधिक से अधिक लोगों को प्रभावित कर सकें। किसी उत्पाद, सेवा या विचार के प्रचार-प्रसार के लिए विज्ञापन बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। ये उपभोक्ताओं के मध्य किसी उत्पाद, सेवा या विचार के प्रति जागरूकता पैदा करने में मदद करते हैं। विज्ञापनों के माध्यम से बहुत अल्प समय में ही किसी उत्पाद या ब्रांड से संबंधित सारी जानकारियां दी जाती है। विज्ञापनों में जनसंचार के बुलेट सिद्धान्त का पालन किया जाता है। इसके अनुसार विज्ञापनदाता अपने विज्ञापन को इतने प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करता है कि लोगों पर उसका प्रभाव पड़ेगा ही। इसमें फीडबैक की प्रतीक्षा नहीं की जाती है।
विज्ञापन में नैतिकता का बहुत महत्व है। विज्ञापनों का प्रभाव लोगों पर बहुत होता है। उपभोक्ताओं का विश्वास होता है कि विज्ञापन में दिखाया जा रहा है तो इसका मतलब है कि यह उत्पाद बहुत अच्छा होगा। वे विज्ञापनों पर विश्वास करके किसी उत्पाद या सेवा का उपयोग करने लगते हैं। जब कोई सेलीब्रिटी विज्ञापन में दिखाया जाता है तो लोगों का विश्वास और बढ़ जाता है। यदि विज्ञापन ही फर्जी हो या उसमें चीजों को बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत किया जा रहा है तो ऐसे में उपभोक्ता धोखा खा जाते हैं।
डिजिटल मीडिया के दौर में विज्ञापनों का स्वरूप भी बदल गया है। टेक्ट्स, पिक्चर, ऑडियो-विजुअल, एनिमेशन इत्यादि का उपयोग करके विज्ञापनों को इतने प्रभावशाली तरीके से तैयार किया जाता है कि उपभोक्ता खीचे चले आते हैं। जिस तरह से ऑनलाइन शाॅपिंग का चलन बढ़ा है ऐसे में डिजिटल विज्ञापन या ऑनलाइन विज्ञापन का महत्व भी बढ़ गया है। किसी वेबसाइट, सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्म पर इन विज्ञापनों की भरमार है। ऐसे में आम उपभोक्ताओं को सही विज्ञापन और फर्जी विज्ञापनों की पहचान करना बहुत कठिन हो गया है।
कुछ वर्ष पहले न्यायालय ने एक आदेश दिया था कि जो सेलिब्रिटी जिस विज्ञापन में प्रदर्शन कर रहा है, उस विज्ञापन की सत्यता की जिम्मेदारी उसकी भी होगी। यदि विज्ञापन फर्जी होगा तो इसके लिए वह स्वयं भी जिम्मेदार होगा। विज्ञापनों पर यह आरोप भी लगता है कि विज्ञापनों में महिलाओं को वस्तु की तरह प्रस्तुत किया जाता है। यदि पुरूषों से जुड़ा कोई उत्पाद हो तो उसमें भी महिलाओं को दिखाया जाना विज्ञापनों में नैतिकता का प्रश्न उठता है।
डिजिटल मीडिया के दौर में सही और गलत विज्ञापन की पहचान कर पाना बहुत मुश्किल है। सरकार और एएससीआई अपने स्तर पर फर्जी विज्ञापनों को रोकने के लिए कार्य कर रही है लेकिन उपभोक्ताओं को भी सावधान रहना होगा। विज्ञापनदाताओं और विज्ञापन एजेंसियों को भी सक्रियता दिखानी होगी।जागरूकता व सावधानी से फर्जी विज्ञापनों के चंगुल से बचा जा सकता है।
-डाॅ. गुरु सरन लाल